मिर्जा गालिब - मरते हैं आरजू में मरने की / मौत आती है पर नहीं आती


कोई उम्मीद बर नहीं आती 
कोई सूरत नजर नहीं आती 
मौत का एक दिन मु'अय्यन है 
नींद क्यों रात भर नहीं आती 
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी 
अब किसी बात पर नहीं आती 
जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-जहद 
पर तबीयत इधर नहीं आती 
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ 
वर्ना क्या बात कर नहीं आती 
क्यों न चीखूँ कि याद करते हैं 
मेरी आवाज गर नहीं आती 
दाग-ए-दिल नजर नहीं आता 
बू-ए-चारागर नहीं आती 
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी खबर नहीं आती 
मरते हैं आरजू में मरने की 
मौत आती है पर नहीं आती 
काबा किस मुँह से जाओगे गालिब 
शर्म तुमको मगर नहीं आती 


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