नयी दिल्ली। पर्यावरण के लिए खतरनाक एकल-उपयोग प्लास्टिक के खिलाफ सरकार के अभियान को एक अवसर के रूप में कागज उद्योग देख रहा है। अगर सरकार ईमानदारी से प्लास्टिक का उत्पादन और उपयोग हतोत्साहित करती है तो एक ओर जहां बेहद खराब हो चुके पर्यावरण को लाभ होगा वहीं कागज उद्योग को नवजीवन मिलेगा। इस क्षेत्र में रोजगार भी बढ़ेगा।
भारतीय कागज एवं विनिर्माण संघ (आईपीएमए) के उपाध्यक्ष सेंचुरी पेपर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जे.पी. नारायण ने कहा कि कागज उद्योग परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। अब तकनीकी परिवर्तन के कारण यह उद्योग कम बिजली और पानी का उपयोग करता है। रीसाइकिल पेपर की उत्पादन की लागत पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत कम है।
उन्होंने कहा बेहतर गुणवत्ता वाले पैकेजिंग उत्पादों की आवश्यकता और अन्य कागज उत्पादों, जैसे टिशू पेपर, फिल्टर पेपर, टी बैग, कार्डबोर्ड आदि की माँग आने वाले वर्षों में भारत में कागज और कागज से बने उत्पादों के बाजार को गति देगी। दिलचस्प बात यह है कि कागज उद्योग का फोकस भी पर्यावरण के अधिक अनुकूल सामान और प्रौद्योगिकी की ओर बढ़ रहा है।
नारायण ने कहा कि कागज उद्योग के लिए एक बड़ा अवसर है क्योंकि भारत में एकल-उपयोग प्लास्टिक बाजार 80,000 करोड़ रुपये के करीब है। इस बाजार पर कागज उद्योग का कब्जा हो सकता है। इसके अलावा कागज उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। नये उत्पादों में नवीनता के साथ स्थिर कच्चे माल की कीमतें उद्यमियों को अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित करेंगी।
हाइव इंडिया के निदेशक संजीव बत्रा ने कहा कि मौलिक और तकनीकी क्रांति के कारण, आज हम 100 प्रतिशत कागज का उत्पादन करते हैं, वह नवीकणीय और बायोडिग्रेडेबल है। आज कागज के उपयोग को पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में नहीं माना जा रहा है। शिक्षा में कागज के उपयोग को भी फिर से महत्व दिया जा रहा है। एफएमसीजी, खाद्य वितरण और ई-कॉमर्स कंपनियों के जिम्मेदार कारोबारी विशेष रूप से रीसाइक्लिंग कागज का उपयोग बढ़ाने और अपनी नियमित पैकिंग आवश्यकताओं से एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को खत्म करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास कर रहे हैं।
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