प्रेम, मानवीयता और समाजवादी क्रांतिकारी भावनाओं से भरा कवि शैलेंद्र


गीतकार शैलेंद्र ने एक गीत लिखा- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियां... लेकिन संगीतकार को दसों दिशाओं पर एतराज हो गया. दिशाएं तो चार ही होती हैं. संगीतकार शंकर-जयकिशन दस के बजाय चार दिशाओं पर अड़े हुए थे. इधर गीतकार भी दसों दिशाओं के प्रयोग को लेकर अड़ गये. यह अपने फन का एक धुनी और फक्कड़ गीतकार था. जो लिख दिया सो लिख दिया. अंत में गीतकार की जीत हुई. लता और मन्ना डे की आवाज में गाने की रिकॉर्डिंग हुई. गीत सुपर हिट हुआ. इस गीतकार का नाम था.
 शैलेंद्र, जो 14 दिसंबर, 1966 को इस दुनिया को अलविदा कह गये. तब उनकी उम्र मात्र 43 साल थी. लेकिन अल्पायु में ही 800 फिल्मी गीत और 60 से अधिक कविताएं लिखकर तथा रेणु की कालजयी कृति तीसरी कसम पर फिल्म निर्माण कर सिनेमा और साहित्य की दुनिया में वे अमिट छाप छोड़ गये. अगर शैलेंद्र कुछ साल और जीवित रहते तो हमें उनका और बेहतर लेखन देखने को मिलता। फिल्म आवारा के गीतों ने तो देश की सीमा पार करते हुए रूस, चीन और अरब देशों में भी धूम मचा दी थी. वे विलक्षण प्रतिभा के थे. आरके नारायण के प्रसिद्ध उपन्यास गाइड पर फिल्म बन रही थी. विजय आनंद ने शैलेंद्र को फिल्म की सिचुएशन समझायी. पांच मिनट के अंदर ही उन्होंने सिगरेट सुलगायी और सिगरेट के डिब्बे पर गीत का एक मुखड़ा लिख डाला- दिन ढ़ल जाये हाय, रात न जाय, तू तो न आये, तेरी याद सताये.
 शैलेंद्र के लिखे गीत लोक गीत की तरह गाये और सुने जाते हैं. वे इश्क, इन्कलाब और इंसानियत के अप्रतीम कवि गीतकार हैं. वे सरल शब्दों में गहरी बात कहने में बेमिसाल थे. इनकी रचना में सरलता के साथ साफगोई भी है. वे अन्याय और उत्पीड़न की ताकतों को चुनौती देने वाले कवि थे. उन्होंने हिंदुस्तान के लोक तत्व का अपने गीतों में बहुत बढिया प्रयोग किया. गीतों में उनकी प्रयोगधर्मिता अद्भुत है. उन्होंने जो नयी उपमाएं प्रस्तुत की , वे हिंदी सिनेमादृसाहित्य के लिए नितांत नयी थीं. ताजगी भरी थीं. रचनात्मकता की चमक थी. जनता के मन में इन उपमाओं ने तुरंत अपनी जगह बना ली, जैसे ''खोया-खोया चांद ''. इसी तरह '' मन की गली '' को भी देखा जा सकता है.
 शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। पिता जी बिहार के थे और ब्रिटिश फौज में थे. बचपन मथुरा में बीता. फिल्मों में गीत लिखने के पहले वे रेलवे में वेल्डर की नौकरी करते थे. वे शब्द के जादूगर थे और शब्दों से चित्रकारी भी करते थे, दिल का चमन उजड़ते देखा, प्यार का रंग उतरते देखा शैलेंद्र के बहुआयामी व्यक्तत्वि पर शोध की जरूरत है. इस दिशा में एक अच्छा प्रयास किया है इंद्रजीत सिंह ने. काफी मेहनत से इन्होंने धरती कहे पुकार के. पुस्तक का संपादन किया है, जो कविराज शैलेंद्र को नजदीक से समझने में मददगार है. मैं इस किताब से नहीं गुजरता, तो शायद मैं भी इस अमर गीतकार के कवि रूप को नहीं जान पाता. -नीरज


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