हैदराबाद। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि भारत 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवसथा बन सकता है, लेकिन यह लक्ष्य कब हासिल होगा, इसकी समयसीमा बताना मुश्किल है. यह लक्ष्य 2024-25 तक हासिल होगा अथवा नहीं, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा. हालांकि, सरकार ने हालांकि, देश को 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है.
कुमार ने फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि इस लक्ष्य को पाने के लिए बड़े पैमाने पर निजी निवेश होना जरूरी है. उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि पांच हजार अरब डॉलर... हम निश्चित रूप से इसे हासिल कर लेंगे, इसमें कोई शक नहीं है. हालांकि, कब? इसे लेकर मैं सुनिश्चित नहीं हूं.क्या हम इसे पांच साल में हासिल कर लेंगे? यह बेहद मुश्किल सवाल है, लेकिन हम निश्चित तौर पर पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेंगे और मैं यह फिर से दोहराता हूं कि ऐसा निजी निवेश में तेजी आने से ही होगा.
उन्होंने कहा कि सिर्फ सरकारी निवेश के दम पर इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता. बुनियादी संरचना क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत है, ताकि इसके परिणामस्वरूप सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को गति मिल सके. इस मौके पर फिक्की की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और ऐसे में धारणा सुधारने के लिए सरकार को एक-दो लाख करोड़ रुपये बाजार में डालने की जरूरत है.
मालूम होकि इससे पहले अनेक अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि जब तक सरकार सामाजिक कल्याण योजनाओं, बुनियादी ढांचे के निर्माण में पैसा नहीं लगाती तब तक आम लोगों की जेब में पैसा नहीं आएगा। नोटबंदी के बाद करोड़ों नौकरियां खत्म हो चुकी हैं और लाखों उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं। महंगाई लगातार बढ़ने से गरीब, मजदूर, किसान का जीना मुश्किल हो गया है। इस बीच में सरकार ने सामाजिक कल्याण योजनाओं में भारी कटौती की है। तमाम सरकारी योजनाओं में काम कर रहे लोगों कई-कई महीने तक मेहनताना/वेतन नहीं मिल पा रहा है। लोगों की जेब में पैसा न होने के कारण बाजार भी ठंडा पड़ा है। ऐसे में निजी निवेशक भी निवेश का जोखिम उठाने में हिचकिचा रहे हैं। उन्हें आशंका सता रही है कि जब ग्राहक ही बाजार में नहीं है तो निवेश कर उत्पादन करने का कोई लाभ होने के बजाय उलटे नुकसान ही होगा। इस धारणा को सुधारने के लिए निजी निवेशकों को प्रोत्साहन के साथ ही सरकारी खर्चों में बंपर बढ़ोत्तरी करनी होगी। और सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने से हाथ खड़े कर रही है ऐसे में बाजार को गति मिलने, पांच ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था की मजबूती के दावे महज खोखली बयानबाजी भर हैं।
आज जनता आजाद भारत के सर्वाधिक संकट के दौर में है। समाज की दुर्दशा आपके आज और भविष्य पर बुरा असर डालती है। बेहतर व्यवस्था के लिए आपका सतर्क और सक्रिय रहना जरूरी है। समस्याओं को उनकी समग्रता में समझना और संबंधित दोषियों की पहचान करना जरूरी है तभी उनसे कारगर तरीके से निपटा जा सकता है।
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