मुंबई। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लागू लाॅकडाउन का तौर-तरीका अर्थव्यवस्था के लिए बहुत भारी पड़ रहा है। करीब 4 प्रतिशत की जीडीपी वाली अर्थव्यवस्था इस लाॅकडाउन से 0 से लेकर 0.5 प्रतिशत के करीब आ गई है और कुछ समय तक यह 0.5 प्रतिशत से लेकर 1 प्रतिशत ही रहेगी। ऐसे समय में करोड़ों-करोड़ जनता को खाने और दूसरी जरूरतों के लिए बहुत खराब हालतों से गुजरना पड़ेगा। इसमें कुछ भुखमरी, कुपोषण, बीमारियों इत्यादि से मरेंगे, कुछ आत्महत्या करेंगे और बहुत अपराध में उतर जाएंगे इसके अलावा लाखों-लाख लोग सक्षम लोगों की मर्जी के गुलाम होने को अभिशप्त होंगे। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने मंगलवार को चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 0.8ः कर दिया है। यह कटौती कोविड-19 महामारी रोकने के लिए सरकारी प्रयासों के प्रभाव के मद्देनजर है। एजेंसी ने कहा कि यह महामारी से पहले 5.6 प्रतिशत के हमारे पूर्वानुमान से काफी कम है।
फिच के मुताबिक 2021-22 में विकास दर 6.7 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन ऐसा लगता है कि इस संकट से राजकोषीय और वित्तीय क्षेत्र के तनाव बढ़ सकते हैं। साथ ही मीडियम टर्म में देश की विकास की संभावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। फिच का अनुमान आईएमएफ के 1.9 प्रतिशत और विश्व बैंक के 1.5-2.8 फीसदी के अनुमान से कम है। यह फिच समूह की ही कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड के 1.9 प्रतिशत के अनुमान के विपरीत भी है।
सोमवार को एक अन्य एजेंसी क्रिसिल ने अपने 3.5 प्रतिशत के पूर्वानुमान को घटाकर 1.8 प्रतिशत कर दिया। सरकार को अभी 6 से 6.5 प्रतिशत के अपने अनुमान में संशोधन करना है क्योंकि वह वित्त वर्ष 2019-20 की जनवरी-मार्च तिमाही और वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही की ग्रोथ नंबर्स का इंतजार कर रही है। इंडिया की जीडीपी ग्रोथ रेट और घटकर 1.9 प्रतिशत हो गई, जो 29 साल के निचले स्तर पर है। कोविड-19 की शुरुआत से पहले दिसंबर में फिच ने स्टेबल आउटलुक से बीबीबी माइनस में की थी। यह अंतिम इन्वेस्टमेंट ग्रेड है और स्टेबल दृष्टिकोण का मतलब है कि इसमे संशोधन मुख्य रूप से राजकोषीय कारकों के आधार पर कुछ समय बाद ही किया जाएगा। फिच के अनुसार, लोअर ग्रोथ या राजकोषीय सहजता के कारण इसमें और गिरावट होगी। भारत की रेटिंग के ऐसे मामले में हमारा आंकलन इस फैसले से निर्देशित होगा कि कोरोना संकट के बाद के माहौल में संभावित मध्यावधि राजकोषीय रास्ता कैसा होगा।
एजेंसी फिच ने आगे कहा कि सरकार कोविड-19 नियंत्रण के होने के बाद राजकोषीय नीति को फिर से सख्त कर सकती है। हाल के वर्षों में राजकोषीय लक्ष्यों को पूरा करने और राजकोषीय नियमों को लागू करने का भारत का रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है। इसमें उल्लेख किया गया है कि देश के पास स्वास्थ्य संकट से उत्पन्न चुनौतियों का जवाब देने के लिए फिस्कल स्पेस बहुत सीमित है। फिच के अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 में सामान्य सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 70 प्रतिशत था, जो 42 प्रतिशत के बीबीबी रेटेड सॉवरेन्स मीडियन से काफी ऊपर था।
फिच एजेंसी के अनुसार भारत की अपेक्षाकृत मजबूत पोजीशन उसकी संप्रभु रेटिंग का समर्थन करती है, और इसने अपने तुलनात्मक रूप से कमजोर राजकोषीय मैट्रिक्स की भरपाई करने में मदद की है। अगर भारत अपने वित्तीय स्थिति में तनाव का एक और दौर झेलता है तो मीडियम टर्म के लिए आर्थिक जोखिम बढ़ जाएगा। मौजूदा मंदी से बैंकिंग क्षेत्र में हुआ पिछले कुछ वर्षों का सुधार फिर से उलट जाएगा। एजेंसी ने आगाह किया कि लंबे समय तक वित्तीय क्षेत्र की कमजोरी क्रेडिट ग्रोथ, आर्थिक उत्पादन, निवेश और उत्पादकता पर असर डाल सकती है।
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