मुंबई। हिंदी फिल्मों में प्राण के अभिनय को जितनी ऊंचाइयां मिलीं, वह किसी अन्य को कम ही हासिल हुईं। उनका जन्म 12 फरवरी 1920 को हुआ। उनके पिता सिविल इंजीनियर थे। प्राण के तीन भाई और तीन बहनें थीं। युवा अवस्था में फोटोग्राफी सीख रहे प्राण ने विभाजन से पहले कुछ पंजाबी और हिंदी फिल्मों में बतौर लीड एक्टर काम किया। विभाजन के बाद वे हिंदुस्तान आ गए और यहां उन्हें फिल्मों में बतौर विलेन पहचान मिली। 1950 से 1980 के दशक तक वे इंडस्ट्री के सबसे खूंखार विलेन के रूप में मशहूर रहे। 2013 में मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में सांस समस्या के बाद 93 साल की आयु में निधन हुआ।
युवा अवस्था में प्राण लाहौर के एक फोटोग्राफी स्टूडियो में काम करते थे। एक दिन पान की दुकान पर खड़े होकर जब प्राण सिगरेट के छल्ले बना रहे थे तो उन्हें प्रोड्यूसर दालसुख एम. पंचोली के साथ काम करने वाले लेखक वली मोहम्मद वली ने देखा और फिल्म में काम करने के लिए ऑफर किया। इसके बाद उन्हें 1940 में पंजाबी फिल्म यमला जट में काम मिला। करीब 20 हिंदी और पंजाबी फिल्मों में भूमिका निभा चुके प्राण विभाजन के बाद पत्नी और एक साल के बेटे अरविंद को लेकर 14 अगस्त 1947 को मुंबई पहुंचे। मुंबई पहुंचकर वे परिवार के साथ ताज होटल में रुके, लेकिन उनके पास कोई काम नहीं होने की वजह से पैसों की कमी होने लगी और उन्हें छोटे होटलों में शिफ्ट होना पड़ा। करीब आठ महीने तक उन्होंने मरीन ड्राइव स्थित देलमार होटल में काम भी किया जिसके बाद उन्हें देव आनंद स्टारर फिल्म जिद्दी में काम मिला।
प्राण ने अपने फिल्मों में काम करने के बारे में अपने पिता को नहीं बताया था। उनको लगता था कि उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिलेगी। एक बार न्यूजपेपर में उनका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ तो प्राण ने अपनी बहन को इसे छिपा लेने के लिए कहा लेकिन तब तक उनके पिता को इसके बारे में पता लग चुका था और वो नाराज भी नहीं हुए। प्राण अपने मेकअप पर भी बहुत काम करते थे। वो अपने घर पर इसके लिए आर्टिस्ट रखते थे और वह वो स्केच बनाता था जैसा प्राण चाहते थे। उसके बाद मेकअपमैन और विगमेकर उस पर काम करते थे। प्राण अपने गेटअप, मेकअप और उच्चारण को लेकर हमेशा प्रयोग करते थे। अपनी खलनायकी के दौर को याद करते हुए एक इंटरव्यू में प्राण साहब ने बताया था, उपकार से पहले सड़क पर मुझे देखकर लोग मुझे अरे बदमाश, ‘,ओ लफंगे, ओ गुंडे कहा करते थे। मुझ पर फब्तियां कसते। उन दिनों जब मैं परदे पर आता था तो बच्चे अपनी मां की गोद में दुबक जाया करते थे और मां की साड़ी से मुंह छुपा लेते। रुंआसे होकर पूछते, मम्मी गया वो, क्या अब हम अपनी आंखें खोल लें, पर मनोज कुमार ने मुझे उपकार में बुरा आदमी से एक अच्छा आदमी बनाकर सबका चहेता बना दिया।
प्राण साहब एक बार दिल्ली में अपने दोस्त के घर चाय पीने गए। उस वक्त उनके दोस्त की छोटी बहन कॉलेज से वापस आई तो दोस्त ने उसे प्राण से मिलवाया। जब प्राण होटल लौटे तब दोस्त का फोन आया। उसने बताया कि उसकी बहन कह रही थी कि ऐसे बदमाश और गुंडे आदमी को घर क्यों लाते हो? दरअसल प्राण अपने किरदार को इतनी शिद्दत से निभाते थे कि लोग उन्हें रियल लाइफ में भी बुरा आदमी ही समझते थे। प्राण कहते थे कि उन्हें हीरो बनकर पेड़ के पीछे हीरोइन के साथ गाना गाना अच्छा नहीं लगता।
1965 में आई फिल्म गुमनाम की शूटिंग के दौरान फिल्म की सेकंड लीड हीरोइन बनीं हेलेन ने प्राण को लेकर डायरेक्टर से शिकायत की थी। दरअसल, फिल्म के एक गाने की शूटिंग स्वीमिंग पूल में हो रही थी। शूट खत्म हो जाने पर सभी मस्ती-मजाक करते थे। ऐसे में प्राण ने हेेलेन को स्वीमिंग पूल में खींच लिया। हेलन पूल में गिर गईं और उन्हें तैरना बिल्कुल भी नहीं आता था जिसकी वजह से प्राण पर बरस पड़ीं। प्राण का रुतबा ऐसा था कि 1960 से 70 के दशक में प्राण की फीस 5 से 10 लाख रुपए होती थी। केवल राजेश खन्ना और शशि कपूर को ही उनसे ज्यादा फीस मिलती थी।
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