कोरोना से मानसिक बीमारियों में भारी वृद्धि, एक चैथाई आबादी अस्थिरता, अवसाद, तनाव, उदासी, चिंता, घबराहट, अनिद्रा,, गुस्सा, चिड़चिड़ेपन की कगार पर


नई दिल्ली/लंदन। कोरोनावायरस से दुनियाभर में डर और चिंता का माहौल बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी संकट की इस घड़ी में लोगों से अन्य सावधानियों के साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने को कह रहा है। कोरोनावायरस डर, चिंता और अवसाद तक का कारण बन सकता है। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि मरीज, क्वारेैंटाइन में या आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति और यहां तक कि इलाज कर रहे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर इससे असर पड़ सकता है। कोरोना का हमारे दिमाग पर अत्यधिक असर हो रहा है। हमारे यहां सरकार जनकल्याणकारी नहीं है। उसने अचानक से बिना कोई समय दिए लाॅकडाउन कर दिया। वह जनता को जीने के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया नहीं करा सकती। अपने रोजगार, काम-धंधे, जमीन, घर मकान या किसी प्रियजन को खोने का डर, एक तो पहले ही जीना आसान नहीं था अब आगे गुजारा कैसे होगा जैसी तमाम चिंताएं हमें मानसिक रोगी बना रही हैं। दुनिया भर में हर आदमी की लगभग समान चिंताएं होती हैं। सामान्य सोच सामने आने वाली समस्याओं से प्रभावित होती है।
 देश में मनोचिकित्सकों के सबसे बड़े एसोसिएशन इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के सर्वे के मुताबिक, कोरोनावायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है। सर्वे बताता है कि मरीजों की यह संख्या एक हफ्ते के अंदर ही बढ़ी है और वैश्विक महामारी इसका एक कारण हो सकता है। लोगों में लॉकडाउन के चलते बिजनेस, नौकरी, कमाई, बचत और यहां तक कि मूलभूत संसाधन खोने तक डर भी इसका कारण माना जा रहा है।
 इसी साल जनवरी में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने भी बताया था कि हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार है। चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद अगर मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती है, तो इसके लिए जागरूकता और सुविधाएं, दोनों की ही कमी को जिम्मेदार माना जा सकता है। दुनियाभर में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हुए हैं। भारत में इसका आंकड़ा और भी कम है। कोरोना के कारण कई लोग क्वारैंटाइन, आइसोलेशन में या फिर अकेले रहने को मजबूर हैं। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है। 
 किंग्स कॉलेज लंदन ने हाल ही क्वारैंटाइन के असर से जुड़े 24 पेपर्स का रिव्यू किया है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित इस रिव्यू के मुताबिक विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि क्वारैंटाइन में रहने वाले लोगों में संक्रमण का डर, चिढ़चिढ़ापन, बोरियत, जानकारी की कमी या सामान की कमी की चिंता जैसी दिक्कतें सामने आती हैं। अध्ययनों के मुताबिक अन्य मनोवैज्ञानिक लक्षणों में भावनात्मक अस्थिरता, अवसाद, तनाव, उदासी, चिंता, पैनिक (घबराहट), नींद न आना, गुस्सा भी शामिल है। 
 क्वारैंटाइन में रह चुके लोगों पर हुए एक सर्वे ने यह भी बताया कि सबसे ज्यादा उदासी (73 फीसदी) और चिढ़चिढ़ापन (57 फीसदी) की समस्या देखी गई है। एक्सपर्ट एक जगह सीमित रहने, रोज का रूटीन के खराब होने और सामाजिक संपर्क के कम होने को कारण मानते हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि माता-पिता की तुलना में बच्चों में क्वारैंटाइन की वजह से 4 गुना ज्यादा तनाव होता है। क्वारैंटाइन की वजह से आए मनोवैज्ञानिक बदलावों का असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक रह सकता है। लैंसेट के रिव्यू का एक अध्ययन बताता है कि सार्स बीमारी के फैलने के दौरान क्वारैंटाइन में गए लोग कुछ हफ्ते बाद तक भी इस मनोस्थिति से नहीं निकल पाए। जैसे 26 फीसदी लोग भीड़ वाली बंद जगहों (समारोह आदि)  में नहीं गए और 21 फीसदी किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं गए। 
 दूसरी ओर चीन में हुए एक अध्ययन ने भी बताया कि अस्पताल कर्मचारियों पर क्वारैंटाइन की वजह से हुए तनाव का असर तीन साल बाद तक भी देखा गया। किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं के मुताबिक लोगों से उनकी आजादी छिनने का असर उनके दिमाग पर लंबे समय तक रह सकता है। हालांकि शोध  इसका एक और पहलू भी बताते हैं। सार्स फैलने के दौरान ही हुआ एक सर्वे बताता है कि जहां लोगों ने डर, घबराहट, ग्लानि और उदासी जैसी भावनाएं महसूस की वहीं क्वारेंटाइन में रहे पांच फीसदी लोगों ने खुशी और 4 फीसदी ने राहत की भावना भी महसूस की।
विभिन्न एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसी महामारी की स्थिति में लोगों को अनिश्चितता महसूस होती रहती है। अकेलापन इन बातों का बढ़ा देता है। यही विचार और भावनाएं एंग्जायटी डिसऑर्डर में बदलने लगती है। कोरोना वायरस के डर के कारण आपको एंग्जायटी डिसऑर्डर और पैनिक अटैक नहीं हो रहे हैं या नहीं, इसकी जांच आप इन लक्षणों को देखकर कर सकते हैं-
क्या आप बार-बार तथ्य और आंकड़े जांचते रहते हैं ?
क्या आपको नींद नहीं आती, सोचते रहते हैं कि कुछ बुरा हो सकता है ?
आपको क्या बार-बार बीते दिनों को याद आती है ?
आपको लगभग हर चीज को लेकर ग्लानि होती है ?
आपको या तो बहुत भूख लगती है बहुत सा खाना खाते हैं या भूख मर गई है ?
आपको कई बार कंपकपी होती है और किसी चीज में ध्यान नहीं लगता है ?


सम्मानित सुधिजन, इस मुश्किल दौर में धैर्य और सतर्कता बरतिये, सरकारों, प्रशासन और चिकित्सा-स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाहों पर अमल कीजिए। खाली समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन करने और अपने किसी हुनर को निखारने लगाइये।
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