नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लोग समझते हैं कि वह जो कर रहे हैं वही सही है, इसे देश का बेड़ा गर्क हो तो हो। लेकिन इस सोच ने देश का बहुत नुकसान किया है और इस तरह देश लंबा सफर तय नहीं कर सकता। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रफेसर रघुराम राजन को आइएमएफ यानी इंटरनेशनल मोनेटरी फंड (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने सलाहकार समिति में शामिल किया है। वे कोरोना वायरस से विश्व की अर्थव्यवस्था को बचाने में अपना योगदान देंगे। एक निजी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर भारत सरकार कोरोना महामारी से देश को बचाने में उनसे सहयोग की अपील करती है तो वे वापस भारत जरूर आएंगे।
कोरोना के असर पर बात करते हुए राजन ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में घुस चुकी है। राजन ने इसमें अगले साल सुधार की उम्मीद जताई है। भारत की चुनौती को लेकर उन्होंने कहा कि देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती विदेशी मुद्रा एक्सचेंज को लेकर है। दूसरे इकॉनमी की तुलना में हमारे देश की मुद्रा वैसे बेहतर कंडिशन में है इसकी वजह रिजर्व बैंक द्वारा मजबूत समर्थन है। इसमें कोई शक नहीं है कि रुपये में डॉलर के मुकाबले गिरावट आई है, लेकिन दूसरे देशों की मुद्रा के मुकाबले यह कम है। रघुराम राजन ने सरकार से अपील की है कि वह इस मुश्किल घड़ी मे विपक्ष और सभी फील्ड के एक्सपर्ट लोगों को सामने लेकर आए और चुनौती का मिलकर मुकाबला करे। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है।
उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय में शामिल लोगों की मदद से इस चुनौती का मुकाबला करना आसान नहीं होगा। सरकार को हर फील्ड के एक्सपर्ट लोगों की मदद की जरूरत है जिसपर विचार करने की जरूरत है। केवल च्डव् में शामिल कुछ लोगों की मदद से अगर इस इमर्जेंसी से मुकाबला किया जाएगा तो शायद देर हो जाएगी। 2008-09 की मंदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उस दौरान डिमांड में जबर्दस्त गिरावट आई थी लेकिन भारत में वर्कर्स काम पर जा पा रहे थे। उस समय देश की तमाम कंपनियों की आर्थिक स्थिति मजबूत थी और देश बहुत तेजी से विकास कर रहा था। हमारा फाइनैंशल सिस्टम भी काफी मजबूत था और सरकार की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी। वर्तमान में हर मोर्च पर हम फिसल रहे हैं जिसके कारण चुनौती ज्यादा बड़ी है।
साथियों, लाॅकडाउन के चलते देश की करीब आधी आबादी की हालत खराब है। कोरोना का प्रसार रोकने को लाॅकडाउन जरूरी था लेकिन सीमित समय के लिए खुल रही दुकानों और बैंकों के आगे लगी भीड़ सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी-तैसी कर रही है। हमें लाॅकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए भी जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए और अपने स्थानीय जनप्रतिनिधियों, अपने राज्य की और केंद्र की सरकार से सवाल करना चाहिए कि लाॅकडाउन से पहले स्वास्थ्य-चिकित्सा और सामाजिक सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किये गये ? भुखमरी, बदहाली से जो मानवीय हानि हो रही है उसका जिम्मेदार कौन है ?
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