अंकारा/इस्तांबूल। कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए तुर्की की कार्रवाई शेष विश्व से बहुत अलग नहीं रही। तुर्की सरकार ने सभी अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स, स्पोर्ट्स इवेंट्स और देश की 90 हजार मस्जिदों में प्रार्थना सभाएं रद्द कर दीं। स्कूल, विश्वविद्यालय और रेस्त्रां बंद कर दिए। यहां 65 साल की उम्र से ज्यादा और 20 साल से कम उम्र के लोगों को घर पर रहने को कहा गया। हालांकि, एक बात तुर्की को बाकी देशों से अलग बनाती है। यहां पिछले कुछ समय में कलोन (अल्कोहल बेस्ड परफ्यूम) की बिक्री 3400ः तक बढ़ गई है। यह आंकड़े केवल एक ऑनलाइन विक्रेता के हैं। यूं तो तुर्की में हमेशा ही बैक्टीरिया मारने (और शरीर की बदबू मिटाने) के लिए मेहमानों के हाथों पर कलोन छिड़कने की परंपरा रही है। यहां रेस्त्रां में आने वाले मेहमानों को वेटर और बस में लंबी यात्रा करने वालों को बस अटेंडेंट भी इसी तरह कलोन देते हैं। लेकिन, महामारी के बाद से इसकी मांग में बहुत तेजी आ गई है। चूंकि, कलोन में अल्कोहल की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए माना जा रहा है कि यह वायरस मार सकती है।
जानकारी के अनुसार बेशक साबुन कलोन से सस्ता है, लेकिन इसकी खुशबू ज्यादा अच्छी है। तुर्की की सरकार ने भी यह नीति बनाई कि उसके नागरिकों को कलोन की कमी न हो। 18 मार्च को राष्ट्रपति तैयब एर्दोआन ने वादा किया कि सभी बुजुर्गों को कलोन मिलता रहेगा। कुछ दिनों बाद स्थानीय उत्पादकों ने तय किया कि वे महामारी के इस दौर में कलोन की कीमत नहीं बढ़ाएंगे। तुर्की कीटाणुओं से डरने वाले लोगों का देश है। यहां खाने की गुमटियों वाले हाथ पोंछने के गीले कपड़े देते हैं। तुर्की में 48 हजार केस हैं। 1 हजार मौतें हुईं हैं, जो ब्रिटेन, इटली, जर्मनी की तुलना में बेहतर स्थिति है।
2015 में एक सर्वे हुआ, जिसमें दुनियाभर के लोगों से पूछा गया कि वे टॉयलेट जाने के बाद बाद हाथ धोते हैं या नहीं। इसमें यूरोप की किसी भी देश की तुलना में तुर्की के लोग सबसे आगे निकले। यहां 94 प्रतिशत लोग टॉयलेट (लघुशंका) के बाद हाथ धोते हैं। फ्रांस (62 प्रतिशत), इटली (57 प्रतिशत) और नीदरलैंड (50 प्रतिशत) भी तुर्की से पीछे थे।
साथियों, लाॅकडाउन के चलते देश की करीब आधी आबादी की हालत खराब है। कोरोना का प्रसार रोकने को लाॅकडाउन जरूरी था लेकिन सीमित समय के लिए खुल रही दुकानों और बैंकों के आगे लगी भीड़ सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी-तैसी कर रही है। हमें लाॅकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए भी जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए और अपने स्थानीय जनप्रतिनिधियों, अपने राज्य की और केंद्र की सरकार से सवाल करना चाहिए कि लाॅकडाउन से पहले स्वास्थ्य-चिकित्सा और सामाजिक सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किये गये ? भुखमरी, बदहाली से जो मानवीय हानि हो रही है उसका जिम्मेदार कौन है ?
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