पेइचिंग। कोरोना वायरस संक्रमण की जांच का परिणाम शत-प्रतिशत पक्का नहीं है। जांच पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। यह जरूरी नहीं कि जिसे कोरोना संक्रमण की जांच में निगेटिव ठहरा दिया गया हो वह वास्तव में कोरोना मुक्त हो ही या जिसे पाॅजिटिव बताया जा रहा हो वह पाॅजिटिव हो ही। तमाम देशों में ऐसे केस सामने आ रहे हैं कि निगेटिव ठहरा दिए गये लोग अगली जांच में पाॅजिटिव या पाॅजिटिव बताए गये लोग अगली जांच में निगेटिव पाए गये। अब एक और तथ्य सामने आ रहा है, कोरोना संक्रमित व्यक्ति के इलाज के बाद वायरस फेफड़े में लम्बे समय तक छिपा रह सकता है। चीनी शोधकर्ताओं के मुताबिक, चीन में ऐसे मामले भी सामने आए जब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के 70 दिन बाद मरीज पॉजिटिव मिला। दक्षिण कोरिया में इलाज के बाद 160 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले। ऐसे ही मामले चीन, मकाउ, ताइवान, वियतनाम में भी सामने आ चुके हैं।
साउथ कोरिया सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर जियॉन्ग यूं-कियॉन्ग का कहना है, कोरोना वायरस दोबारा मरीज को संक्रमित करने की बजाय रि-एक्टिवेट हो सकता है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनावायरस फेफड़े में अंदर गहराई में रह सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि यह जांच रिपोर्ट में पकड़ में न आए।
चीन की आर्मी मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बियान शियूवु का कहना है कि 78 साल की एक महिला का तीन बार टेस्ट निगेटिव आया। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने के कुछ समय के बाद वह महिला फिर कोरोना पॉजिटिव मिली। उसे फिर 27 जनवरी को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। 13 फरवरी को डिस्चार्ज हुई और अगले ही दिन कार्डियक अटैक से मौत हो गई।
मौत के बाद महिला के पोस्टमॉर्टम के दौरान डॉक्टर्स को लिवर, हार्ट, आंत और बोन-मैरो में कोरोना वायरस नहीं मिला। लेकिन फेफड़ों की गहराई में वायरस के स्ट्रेन मिले। जब इसे इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखा गया तो कोरोनावायरस की पुष्टि हुई। शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में पड़े कोरोना स्ट्रेन के लक्षण साफतौर पर दिखाई नहीं देते। वर्तमान में हो रही टेस्टिंग में सैम्पल फेफड़ों की गहराई से नहीं लिए जाते इसलिए रिपोर्ट निगेटिव आती है। विशेषज्ञों ने कोरोनावायरस के इस तरह के संक्रमण के तरीकों को जल्द से जल्द समझने की जरूरत है।
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