लाॅकडाउन से तबाह अर्थव्यवस्था-रोजगार, 61 प्रतिशत भारतीय विद्यार्थी विदेश में पढ़ाई करने से वंचित


लंदन/नई दिल्ली। भारत में लंबे लाॅकडाउन से ध्वस्त अर्थव्यवस्था और चौपट रोजगार विद्धार्थियों और स्कूल/काॅलेजों पर भारी पड़ रहा है। देश में बेहतर पढ़ाई के अवसर बेहद कम हैं और विदेशों में पढ़ाई करने पर ग्रहण लग गया है। ब्रिटिश रेटिंग एजेंसी क्वाकरेल्ली सायमोंड्स के सर्वे के मुताबिक करीब 61 प्रतिशत भारतीय छात्र महामारी के कारण विदेश में पढ़ाई की योजना को आगे के लिए टाल रहे हैं। हायर एजुकेशन के लिए विदेश जाने वाले छात्रों में से 48ः छात्र ऑनलाइन एजुकेशन में बिल्कुल रुचि नहीं रखते हैं। सर्वे में कहा गया है कि करीब 8 फीसदी छात्र देश में रह कर पढ़ाई करेंगे। सर्वे के मुताबिक भारत के 49 फीसदी छात्र इस साल एमबीए और ग्रेजुएट डिप्लोमा, 19 फीसदी मास्टर और पीएचडी और 29 फीसदी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते थे। लेकिन महामारी के चलते छात्रों को इस बार विदेश में पढ़ाई की योजना को हालत सुधरने तक के लिए टालना पड़ रहा है।
 कोरोनाकाल में विदेशी विश्वविद्यालय वर्चुअल एजुकेशन पर फोकस कर रहे हैं। लेकिन सर्वे के मुताबिक 48 फीसदी भारतीय छात्र ऑनलाइन एजुकेशन में ज्यादा नहीं है। वहीं करीब 16 फीसदी छात्र वर्चुअल एजुकेशन प्रोग्राम में अपनी रुचि रखते हैं। सर्वे में 82 फीसदी भारतीय छात्रों के अलावा दुनिया के अन्य देशों के छात्र भी वर्चुअल एजुकेशन के लिए फीस में कमी करने की भी बात कही थी। जबकि 5 फीसदी भारतीय छात्रों को फीस से संबंधित कोई शिकायत नहीं थी और 12 फीसदी छात्रों ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नही दिया था।
 फीस में कितनी कमी हो इस पर भी छात्रों ने अपनी बात रखी। कॉलेज फीस में करीब 24 फीसदी छात्र फीस में 50 प्रतिशत, 19 फीसदी छात्र 40 प्रतिशत और 20 फीसदी छात्र 30 प्रतिशत का डिस्काउंट चाहते हैं। एजेंसी के मुताबिक ज्यादातर छात्र चाहते हैं कि उनकी इन मांग को विदेशी यूनिवर्सिटीज को ध्यान देना चाहिए। हालांकि इसमें ज्यादातर छात्रों का मानना था कि यूनिवर्सिटीज बड़े रूम से सोशल डिस्टेंसिंग के साथ क्लासेज शुरु करना चाहिए। शिक्षकों को कोरोना से संबंधित सभी नियमों के साथ कक्षाएं अटेंड करनी चाहिए। जुलाई 2018 में भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक विदेशों में बढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 7.53 लाख थी। क्वाकरेल्ली सायमोंड्स ब्रिटिश सर्वे एजेंसी है, यह हर साल दुनियाभर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग संबंधी डाटा जारी करता है। पहले इसे टाइम्स हायर एजुकेशन-क्यू. एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के नाम से जाना जाता था।


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