मुंबई। आॅनलाइन पढ़ाई और आॅनलाइन परीक्षाओं की चर्चा हो रही है। करोड़ों बच्चे आॅनलाइन पढ़ाई से महरूम हैं। जो आॅनलाइन पढ़ भी रहे हैं उनके कुछ खास पल्ले नहीं पड़ रहा। अभिभावक परेशान हैं। ज्यादातर घरों का पूरा माहौल गड़बड़ा गया है। बच्चों को स्कूल भेजने, बच्चों के जाने-आने, फिर आराम, खेलकूद, होमवर्क का पूरा शैडयूल रहता था जिसमें बड़े और बच्चे दोनों ढले रहते थे, सब तहस-नहस हो गया है। और ज्यादातर सरकारें इस बर्बादी की परवाह नहीं कर अपना लाभ-हानि देख रही हैं। हाल ही में जारी यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ऑनलाइन एजुकेशन के लिए सिर्फ 24 फीसदी स्टूडेंट्स के पास इंटरनेट कनेक्शन उप्लब्ध हैं। इसके अलावा शहरी- ग्रामीण और लिंग विभाजन में भी काफी बड़ा अंतर है, जिससे उच्च, मध्यम और निम्न आय वाले परिवारों में पढ़ाई के स्तर पर भी काफी अंतर पड़ सकता है।
गुरुवार को रिमोट लर्निंग रिचेबिलिटी रिपोर्ट जारी करते हुए यूनिसेफ ने डिस्टेंस लर्निंग की पहुंच से जूझ रहे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए चिंता जाहिर की। रिपोर्ट में यूनिसेफ ने कहा कि उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में सिर्फ एक चौथाई घरों (24 फीसदी) में इंटरनेट की पहुंच है। साथ ही एक बड़ा ग्रामीण- शहरी और लैंगिक विभाजन भी है, जिसके के कारण उच्च, मध्यम और निम्न आय वाले परिवारों में सीखने का अंतर भी काफी बड़ा है। ऐसा इसलिए क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों की स्मार्ट लर्निंग तक पहुंच नहीं हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ज्यादातर हाशिए समुदायों के बच्चे विशेषकर लड़कियों के पास स्मार्टफोन की पहुंच आसान नहीं और यदि किसी के पास फोन उपलब्ध भी है, तो इंटरनेट कनेक्टिविटी खराब है या गुणवत्ता वाली शिक्षा सामग्री आसान भाषा में उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कोरोना की वजह से देश में करीब 15 लाख से ज्यादा स्कूल बंद है। ऐसे में प्री- प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी तक के करीब 28.6 करोड बच्चों की शिक्षा काफी प्रभावित हुई है। इन बच्चों में 49 फीसदी लड़कियां शामिल है, जबकि 6 करोड़ लड़के- लड़कियां कोरोनावायरस से पहले ही स्कूल से बाहर थे।
कोरोना को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने घर पर ही पढ़ाई जारी रखने के लिए डिजिटल और गैर- डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए कई पहल शुरू की है। ऐसे में अब यूनिसेफ ने भी बच्चों की सीखने की सामग्री के उपयोग और उसमें सुधार के लिए कई कदम उठाने और रणनीति बनाने का फैसला किया है। इस बारे में यूनिसेफ इंडिया के प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने समुदायों, माता- पिता और स्वयंसेवकों के साथ बच्चों तक पहुंचने और मौजूदा दौर में उनकी पढ़ाई में मदद के लिए संयुक्त दृष्टिकोण अपनाने को कहा है। यास्मीन ने कहा कि मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। स्कूल बंद है, माता- पिता के पास रोजगार नहीं है और परिवार तनाव से गुजर रहा है। ऐसे में बच्चों की एक पूरी पीढ़ी ने उनकी पढ़ाई को बाधित होते देखा है। डिजिटल शिक्षा तक पहुंच भी सीमित होने की वजह से सीखने के इस अंतर को कम नहीं किया जा सकता। ऐसे में बच्चों तक पहुंचने के लिए सभी को एक मिश्रित दृष्टिकोण अपनाना होगा। कोरोना की वजह से दुनिया भर में बंद स्कूल के करीब एक तिहाई स्कूली बच्चे यानी 46.3 करोड़ बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन हासिल करने में असमर्थ है। ऐसे में यूनिसेफ ने सरकारों से आग्रह किया है जब वह लॉकडाउन ढील देना शुरू करेंगे, तब वे स्कूलों को सुरक्षित ढंग से दोबारा खोलने को प्राथमिकता दें।
यूनिसेफ की यह रिपोर्ट 100 देशों के प्री- प्राइमरी, प्राइमरी, लोअर- सेकेंडरी और अपर सेकेंडरी में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों के पास रिमोट लर्निंग के लिए उपलब्ध सामग्री के आधार पर तैयार की गई है। इसके अलावा बच्चों की टीवी, रेडियो, इंटरनेट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मिलने वाले स्टडी मैटेरियल की उपलब्धता को भी शामिल किया गया है।
भारत में करीब 15 लाख स्कूल बंद हुए हैं, जहां 28 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। इसमें 49 फीसदी लड़कियां हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सिर्फ 24 फीसदी घरों में ही ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा उपलब्ध है। एनसीईआरटी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 27 फीसदी छात्रों के पास मोबाइल या लैपटॉप नहीं है। 28 फीसदी बच्चों के पास फोन चार्ज करने के लिए बिजली नहीं है। इसके अलावा जिनके पास ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधा है, उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
एनसीईआरटी के सर्वे में 33 फीसदी बच्चों ने बताया कि वे अपनी पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें साइंस और मैथ्स के सब्जेक्ट में ज्यादा दिक्ककत आ रही है, ऑनलाइन उनके डाउट्स क्लियर नहीं हो पा रहे हैं। अगर स्कूल-कॉलेज खोल दिए जाए तो इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। लेकिन, सवाल यह है कि क्या इसके लिए स्कूल-कॉलेज तैयार हैं, क्या उनके पास सुविधा हैं। यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया में हर पांच में से दो स्कूलों के पास साफ- सफाई के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।
करीब 81 करोड़ बच्चों के पास हैंडवाश और सैनिटाइजर नहीं है। इसमें से 35 करोड़ के पास हाथ धोने के लिए साबुन तो है लेकिन 46 करोड़ के पास पानी नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर तीन में से एक स्कूल में पीने के लिए पानी की भी व्यवस्था पर्याप्त नहीं है।
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